एहसास
एक एहसास जो सबके जीवन का एक एहम पहलू है, उस एहसास से आप सबको रू ब रू करवाने के लिए मेरी कुछ पंक्तियाँ
बारिश के इस मौसम में आँखों में क्यों गहरा पानी है
फूल हैं निखरे निखरे फिर भी तुम्हारे अक्स की ना कोई निशानी है
मिट्टी की सौंधी खुशबू से भी क्यों रूह को है आराम नहीं
पत्ते की एक सरसराहट से भी क्यों होती दिल को परेशानी है
निगाहें खफ़ा हैं तो क्यों होती हर शाम बेगानी है
पातें हैं जिस प्यार को हर इम्तेहान से गुज़रकर
बयाँ करता है दास्ताँ वो फिर, होती सबकी वो ही कहानी है
प्यार से बंदिशों में भी क्यों हो जाती गुस्ताख नादानी है
आईने का अपना वजूद नहीं, करते हम क्यों फिर उसकी गुलामी है
खोया है खुद को किसी के पाने में, क्यों होता ये एहसास रूहानी है
पास हो वो तो दिल में होती है दस्तक, दूर जाने से उसके क्यों होती वक़्त को हैरानी है
दुआ है रब से इस प्यार की जीस्त लम्बी हो, उसके रुखसार पर पलकें बिछीं हो
जैसे अंजुमन को आफताब, तूफ़ान को साहिल की तमन्ना पुरानी है
really very nice!
जवाब देंहटाएंमिनी जी
जवाब देंहटाएंबहुत दिनों के बाद आप आयीं, लेकिन वापसी इस कमाल के साथ करेंगी उस बात का अंदाजा नहीं था, अभी कुछ ही वक़्त हुआ है आपको ब्लॉग की दुनिया में आयी लेकिन आपकी सोच, समझ, कल्पनाओं में जो परिपक्वता का प्रदर्शन है वो वाकई काबिल-ए-तारीफ है!
आईने का अपना वजूद नहीं, करते हम क्यों फिर उसकी गुलामी है
क्या खूबसूरती से आपने बयान किया है एक दिल की गहराइयों को, बहुत ही उम्दा!
ऐसे ही लिखती रहिये!
Waah...lajawab rachna...Badhai swiikaren...
जवाब देंहटाएंbhtrin rachna ke liyen badhaai .....akhtar khan akela kota rajsthan
जवाब देंहटाएंbahut umda likha hai aapne Mini ji ,badhai sweekar karein..........
जवाब देंहटाएंबहुत इंतज़ार के बाद आई आपकी नई कविता …
जवाब देंहटाएंरचना अच्छी है , बधाई !
खोया है खुद को किसी के पाने में, क्यों होता ये एहसास रूहानी है...Aaaah Behadd khoobsurat
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